ओसियान
फिल्म समारोह में फिल्मों का कारवां धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है और फिल्म प्रेमी
फिल्मों के इस कारवां का पूरा लुत्फ उठा रहे हैं. हर फिल्म एक दूसरे से शिल्प
और कथ्य के धरातल पर अलग है पर सबका नशा दिल्ली वालों के सर चढ़ कर बोल रहा है.
दीवानगी का आलम यह है कि अधिकांश फिल्मों के अगले शो हाउसफुल हैं. पर ओसियान भी
कम दिलदार नहीं है. ओसियान के आयोजक यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि फिल्म के दीवानों
के थियेटर के दरवाजे पर खड़े होने की सूरत में थियेटर के अंदर कोई सीट खाली न रहे.
यहां तक कि सीटों के बीच के गलियारे में कार्पेट पर भी फिल्म की भूख लिए लोग बैठे
देखे जा सकते हैं. सोने पर सुहागा यह है कि दर्शकों की मांग पर कुछ फिल्मों के शो
रिपीट भी किए गए हैं. ‘यूएफओ इन हर आइज’ और ‘बैलेड और रूस्तम’ एसी
ही फिल्में हैं.
अगली फिल्मों का शेड्यूल चैक करते सिने प्रेमी |
अपने
पिछले लेख में मैंने आपको अंतिम कुछ दिनों में दिखाई जाने वाली कुछ चुनींदा फिल्मों
का जिक्र किया था. इन्हीं में से कुछ फिल्मों को देखने का मैंने प्रयास किया. एक्सपेरिमेंटल
सिनेमा में इन दिनों भारतीय फिल्मकार भी अच्छा काम कर रहे हैं. समारोह के छठे दिन
प्रदर्शित संदीप रे की बंगाली फिल्म ‘कोक्खो पोथ’ के अंग्रेजी वर्शन ‘द साउंड ऑफ ओल्ड रूम्स’ ने दर्शकों का दिल जीत लिया. आप जानकर हैरान ही होंगे कुल 75 मिनट की इस
डाक्यूमेंट्री फिल्म को बनाने में संदीप को कुल 20 वर्षों का समय लगा. दरअसल
संदीप ने इस फिल्म को न केवल बनाया है बल्कि इसे हर पल जिया है. असल में संदीप ने
अर्थशास्त्र में पीएचडी की डिग्री होल्डर अपने एक उम्दा कवि मित्र सार्थक रॉय
चौधरी की जिंदगी के पिछले 20 वर्षों को लगातार कैमरे में कैद किया और फिर अंत में
जो बन पडा वह ‘द साउंड ऑफ ओल्ड रूम्स’ थी . अपने नाम के
अनुरूप पूरी फिल्म में कलकत्ता शहर के पुराने घरों में किसी भी आम दिन में जन्म
लेने वाली आवाजों को कैद करने की सफल कोशिश की गई है. कहा जाता है कि कला जिंदगी का
आईना होती है और कला को तभी सफल कहा जा सकता है जब वह जिंदगी के उतार चढाव और
संघर्षों को उसी शिद्दत के साथ आत्मसात कर सके. सार्थक रॉय चौधरी, उसके घर और उसकी जिंदगी के
संघर्षों में झांकती यह फिल्म अपने आप में कलकत्ता शहर, वहां के बाशिंदों और चेंज इन कॉन्ट्यूनिटी और कॉन्ट्यूनिटी
इन चेंज का आईना बन पड़ी है.
फिल्म द साउंड ऑफ ओल्ड रूम्स के निर्देशक संदीप रे फिल्म के लीड करैक्टर सार्थक रॉय चौधरी के साथ प्रश्नोत्त्र सत्र में |
चीनी
फिल्म ‘यूएफओ इन हर आइज’ हमें चीन के गुमनाम से गांव से रूबरू कराती है. जहां गांव की एक लड़की को
एक दिन आसमान में एक अजीब चमकती हुई चीज दिखाई पड़ती है जिसे यूएफओ समझा जा रहा
है. बस इसी एक घटना का गांव के प्रशासन से जुडे लोग फायदा उठाते हैं और इस स्वार्थपूर्ती
में अगर कुछ पिसता है तो वह है एक 30 वर्षीय अविवाहित लड़की शी के की
भावनाएं, किसानों की जमीनें और वहां की संस्कृति. फिल्म
में अनेकों प्रतीक बड़ी ही कलात्मकता के साथ प्रयोग किए गए हैं जो बहुत कुछ कहते
हैं. फिल्म अपनी कहानी के साथ साम्यवादी चीन की नीतियों और वहां के बाशिंदों के
अपने देश में अधिकारों और उनके हालातों को साफ करती चलती है.
वहीं
आशीष आर. शुक्ला की साइकोलोजिकल थ्रिलर ‘प्राग’ का
वर्ल्ड प्रीमियर भी ओसियान का हिस्सा बना. पर प्राग अपनी उम्दा पटकथा और
कलाकारों के बेहतरीन अभिनय के बावजूद कमजोर निर्देशन के चलते दर्शकों को ज्यादा
प्रभावित न कर सकी. फिल्म की स्क्रीनिंग के बाद हुए सवाल-जवाब के सत्र में फिल्म
की लगभग पूरी स्टार कास्ट मौजूद थी. मगर फिल्म के निर्देशक आशीष शुक्ला ऑडियंस
के ज्यादातर सवालों के संतोषजनक उत्तर नहीं दे पा रहे थे. संभवतया जिस कन्फ्यूजन
का शिकार यह फिल्म हुई उससे निर्देशक अभी तक जूझ रहे हैं. हां, फिल्म की सिनेमैटोग्राफी के बढि़या काम को अगर छोड़ दें तो फिल्म ने अधिकांश दर्शकों को निराश ही किया. वहीं सातवें दिन मानव कौल की बाल फिल्म ‘हंसा’ की सादगी और बाल कलाकारों के जबरदस्त अभिनय ने दर्शकों को अभिभूत कर
दिया. विदेशी फिल्मों के बीच नैनीताल के पास एक गांव में बनी इस फिल्म ने पहाड़ी
जिंदगी की ताजा हवा का अहसास कराया. मानव कौल एक उम्दा फिल्मकार हैं और अपने काम
का लोहा मनवा चुके हैं. हंसा उनकी झोली में एक और नायाब हीरा ही होगी. मानव हंसा
को अगले कुछ समय में कमर्शियल स्तर पर रिलीज करने का विचार बना रहे हैं. किसी भी
फिल्मकार के लिए लीक से हटकर बनी फिल्मों को कमर्शियल स्तर पर रिलीज करना अपने
आप में बड़ी चुनौती वाला काम है. फिल्म समारोहों में तो ऐसी फिल्मों को काफी
सराहा जाता है मगर जब जनता के बीच थियेटर पर उतरती हैं तो अपना जादू नहीं बिखेर
पातीं. सवाल है कि क्या दर्शक अच्छी फिल्में पसंद नहीं करते. इसका जवाब देते
हुए मानव कौल कहते हैं कि दर्शकों की पसंद का आयाम बहुत बड़ा है और असल मुद्दा उन्हें
अच्छा मनोरंजन उपलब्ध कराना है. अगर हम उन्हें स्वस्थ मनोरंजन देने में सक्षम
हैं तो जरूर वो सिनेमा घर तक ऐसी एक्सपेरीमेंटल फिल्में देखने पहुंचेंगे. पर
इसमें अभी वक्त लगेगा.
फिल्म बारोमास की स्क्रीनिक से पहले फिल्म के निर्देशक धीरज मेश्राम और साथ में हैं बैंजामिन गिलानी, सीमा बिस्वास और फिल्म के अन्य कलाकार |
इस
बार के फिल्म फैस्ट में नए प्रयोगधर्मी युवा निर्देशकों की फिल्में छाई हुई हैं
जो सिनेमा के सुनहरे भविष्य की ओर इशारा कर रहा है. प्रशांत भार्गव की ‘पतंग’,
धीरज मेश्राम की ‘बारोमास’, आशीष शुक्ला की प्राग, अजय बहल की ‘बी.ए.
पास’, मानव कौल की ‘हंसा, शामिल हैं. यही नहीं विदेशी फिल्मों की
श्रेणी में भी तमाम युवा निर्देशक छाए हुए हैं. समारोह के नौवें दिन फिलीपींस की
डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘बेबी फैक्ट्री’ ने दर्शकों को हर फ्रेम के साथ
हैरत में डाला. बेबी फैक्ट्री दरअसल फिलीपींस की राजधानी मनीला में एक सस्ते अस्पताल
की कहानी है जहां सबसे अधिक बच्चों की डिलीवरी होती है. इसीलिए इस फिल्म का नाम
बेबी फैक्ट्री रखा गया. फिल्म में गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी से लेकर उनके हॉस्पीटल
से डिस्चार्ज होने तक के दृश्यों को पूरी वास्तविकता के साथ दिखाने में फिल्म
के युवा निर्देशक यूडार्डो रॉय जूनियर सफल रहे.
फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर के प्रदर्शन के दौरान अनुराग कश्यप फिल्म के कलाकारों के साथ |
इस सब
के बीच अगर किसी चीज के लिए फिल्मों के दीवाने पागलपन की हद तक पहुंच गए तो वह थी
अनुराग कश्यप की फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपर- ।।. यह फिल्म देश भर में 8 अगस्त को
रिलीज हो रही है. गैंग्स ऑफ वासेपुर पार्ट वन के प्रशंसकों के लिए यह दुर्लभ मौका
था. शनिवार शाम को इस फिल्म के दोनों भाग एक साथ दिखाए गए और फिल्मों के दीवाने
दो घंटे पहले से कतार में देखे जा सकते थे. फिल्म तीन दिन पहले टिकट खिड़की खुलते
ही हाउसफुल हो चुकी थी. पर स्क्रीनिंग के दौरान जिसे जहां जगह मिली एडजस्ट हो
गया. सिरी फोर्ट के सभागार एक में तिल रखने की जगह तक नहीं थी. ये बात गौर करने
वाली थी कि इस फिल्म को देखने आए सैकडों लोग ऐसे थे जिन्होंने पूरे फैस्टीवल के
दौरान एक भी फिल्म नहीं देखी थी. ऐसी विशुद्ध रूप से कमर्शियल फिल्म इस फिल्म
समारोह में थोड़ी मिसफिट तो लगी पर दर्शक अगर ऐसी फिल्म के बहाने ही फिल्म फैस्ट
तक पहुंचे इसे आयोजकों की सफलता माना जाना चाहिए. पूरे फिल्म समारोह में शायद ये
एकमात्र फिल्म थी जिसके दौरान खूब सीटियां बजीं और दर्शकों ने तालियां पीटीं. ये
सब दूसरे देशों से आए फिल्म प्रेमीयों ओर ज्यूरी मेंबर्स के लिए एक नया अनुभव तो
था मगर वो भी इस मस्ती का हिस्सा बनकर खुश थे.
समारोह
के अंतिम दिन कुछ खास फिल्में जिनका दर्शकों को बेसब्री से इंतजार है उनमें मणि
कौल की ‘सिद्धेश्वरी’, बिक्रमजीत गुप्ता की ‘द स्टैग्नैंट’ रितुपर्णो घोष की ‘चित्रांगदा- द क्राउनिंग
विश’ शामिल हैं. रविवार शाम 7 बजे सम्पन्न होने जा रहे समापन समारोह में
एशियन-अरब कैटेगरी, इण्डियन कैटेगरी और फर्स्ट फीचर्स कैटेगरी में सर्वश्रेष्ठ
फिल्मों को पुरस्कृत किया जाएगा और तीनों पुरस्कृत फिल्मों को रात 10 बजे से
सिरी फोर्ट के अलग अलग सभागारों में दिखाया जाएगा.
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